पिछले दिनों हरिद्वार और ऋषिकेश की यात्रा में एक व्यक्ति ने मुझे सर्वाधिक प्रभावित किया और वह थे पूजनीय दलाई लामा।
यह दलाई लामा से मेरी पहली मुलाकात नहीं थी। पहले भी अनेक बार हमारा मिलना हुआ है। जबसे उन्हें अपने हजारों अनुयायियों के साथ तिब्बत छोड़ने को बाध्य होना पड़ा और उन्होंने भारत को अपने देश के रूप में अपनाया तब से अनेक कार्यक्रमों में हम दोनों मिले हैं। हम दोनों के बीच सदैव स्नेह और परस्पर आदरभाव के तार जुड़े रहे हैं।
लेकिन कुंभ में दो दिनों तक उनके साथ जो निकटता हुई उससे मेरे मन में उनके प्रति सम्मान और बढ़ा है। उनकी विनम्रता, उनकी श्रेष्ठता, उनकी रचनात्मकता - यह सभी स्पष्ट विशेषताएं हैं।
एनसायक्लोपीडिया ऑफ हिन्दुइज्म के लोकार्पण कार्यक्रम में हम दोनों मंच पर बैठे थे कि अचानक श्रोताओं की व्यापक भीड़ में एक हलचल सी मची जिससे पता लगता था कि किसी विशेष अतिथि का आगमन हुआ है।
और दिखा कि स्वामी रामदेवजी वहां आए और मंच पर विराजे, श्रोताओं ने उत्साहपूर्वक उनका अभिनन्दन किया। परमार्थ निकेतन के स्वामी चिदानन्दजी ने जिन्होंने एनसायक्लोपीडिया को तैयार करने के महती कार्य की पहल की, स्वामी रामदेव को आदरपूर्वक मंच पर लाकर दलाई लामा के साथ बिठाया। और मैं यह देखकर हैरान हो गया कि दलाई लामा ने पहले तो उस तरह से अभिनन्दन किया जैसा सामान्य तौर पर किया जाता है और फिर बगैर किसी औपचारिकता के उन्होंने उनकी दाढ़ी खींचनी शुरू की।
स्वामी रामदेवजी जोर से हंसे और मुझे कहा: ”जब भी वह मुझसे मिलते हैं तो सदैव इसी तरह से अभिनन्दन करते हैं। वह बच्चे की भांति हैं। वस्तुत: दलाई लामा की यह बाल सुलभ सादगी ही उनको सबका प्रिय बनाती है।”
ऋषिकेश आश्रम में जहां मैं रूका था वहां तिब्बती धर्मगुरू के अनेक अनुयायी और प्रशंसक भी रूके थे। उनमें से एक चीनी सज्जन विक्टर चेन ने दलाई लामा पर उनके द्वारा लिखी गई एक उत्कृष्ट पुस्तक - ”द विस्डम ऑफ फॉरगिवनेस: इन्टिमेट कानवरशेसन्स एण्ड जर्नीस” (The Wisdom of Forgiveness : Intimate Conversations and Journeys) मुझे भेंट की।
दलाई लामा द्वारा रामदेवजी के इस तरह के अभिनन्दन ने मुझे इस पुस्तक के एक रोचक पैराग्राफ का स्मरण करा दिया। यह पैराग्राफ आयरलैण्ड के बेलफास्ट की उनकी यात्रा से सम्बन्धित अध्याय में से है। बेलफास्ट की सभा में प्रोटेस्टेंट और कैथोलिक दोनों मौजूद थे, दलाई लामा के एक ओर प्रोटेस्टेंट मिनिस्टर और दूसरी ओर कैथोलिक पादरी थे। जिस पैराग्राफ का मुझे स्मरण हुआ, वह इस प्रकार है:
”उन्होंने दोनों व्यक्तियों को अपने निकट खींचा और दोनों को गले लगाया। तभी उनकी आंखों में एक शरारती चमक झिलमिलाई, वह आगे बढ़े और उनकी दाढ़ियों को जोर से खींचने लगे। उपस्थित भीड़ आनन्दित हुई। दलाई लामा दाढ़ियों को देखते ही सदैव ऐसा ही करते हैं: वह उनके साथ खेलने से अपने को रोक नहीं पाते”।
****
मूलत: हांगकांग के विक्टर चेन अब वैंकूवर में रहते हैं और ब्रिटिश कोलंबिया यूनिवर्सिटी के इंस्टीटयूट ऑफ एशियन रिसर्च में कार्यरत हैं। अपनी पुस्तक की प्रस्तावना में उन्होंने दलाई लामा की लोकप्रियता के मूल्यांकन को इन शब्दों में समाहित किया है:
मैं यह जानने को उत्सुक था कि क्या दलाई लामा को पता है कि वह लोगों के लिए इतने चुंबकीय क्यों है: उनके साथ एक साक्षात्कार में, मैंने उनसे कहा, ”मैं आपसे एक मूर्खतापूर्ण प्रश्न पूछना चाहूंगा।” तिब्बती नेता, भारत के धर्मशाला स्थित अपने आवासीय परिसर के मुलाकात कक्ष के कोने में रखी आरामकुर्सी पर सदैव की भांति पालती मारे बैठे हुए थे। ”आप इतने लोकप्रिय क्यों हैं? आपमें ऐसा क्या है कि अनेक लोग आपसे मिलने के लिए अपने आप को रोक नहीं पाते?”
दलाई लामा तब भी ऐसे ही बैठे थे, प्रश्न को विचारते हुए। उन्होंने मेरे प्रश्न को यूं ही नहीं टाल दिया जैसाकि मैं सोचता था कि वह ऐसा करेंगे।
वह विचारमग्न थे और उन्होंने उत्तर दिया ”मैं नहीं समझता कि मेरे अंदर विशेष रूप से अच्छी विशेषताएं हैं। हां, हो सकता है कुछ छोटी चीजें हों। मेरे पास सकारात्मक (पोजिटिव) दिमाग है। निश्चित ही कभी-कभी मुझे भी गुस्सा आता है। लेकिन मेरे दिल में, मैं कभी किसी को दोष नहीं देता, और न ही उनके बारे में बुरा सोचता हूं। मैं औरों के बारे में ज्यादा सोचने का प्रयास करता हूं। मैं मानता हूं कि मेरी तुलना में अन्य ज्यादा महत्वपूर्ण हैं। हो सकता है कि अनेक लोग मुझे मेरे अच्छे हृदय के लिए पसंद करते हों।
”अब मैं सोचता हूं कि शुरूआत में उनको उत्सुकता रहती होगी। तब शायद जब मैं किसी से पहली बार मिलता हूं तो वह मेरे लिए अपरिचित नहीं होता। मुझे सदैव ऐसा लगता है: वह अन्य मनुष्य ही है। कोई विशेष नहीं, मैं भी उनकी तरह।”
उन्होंने अपने गालों को अपनी अंगुलियों से दबाया और बोलते रहे, ”इस त्वचा के भीतर समान प्रकृति, समान तरह इच्छाएं और भावनाएं हैं। मैं सामान्यतया दूसरे व्यक्ति को खुशी की भावनाएं देने की कोशिस करता हूं। बदले में अनेक लोग मेरे बारे में कुछ पॉजिटिव बोलने लगते हैं। तब और लोग आते हैं, इसी का पालन करते हैं - यह भी सम्भव है।”
जीवन से बड़े उनके व्यक्तित्व की बनी छवि सम्बन्धी मेरे प्रश्न पर विचार करते हुए दलाई लामा ने जवाब देना जारी रखा ”अनेक लोग मेरी हँसी भी पसंद करते हैं। लेकिन किस तरह की हँसी, किस तरह की प्रसन्नता, मैं नहीं जानता।”
मैंने कहा ”जिस तरह की हँसी आप हंसते हैं, अनेक लोग आपकी हँसी पर टिप्पणी करते हैं। आप सत्तर के आस-पास हैं लेकिन अभी भी आप प्रसन्नचित्त शोरगुल को पसंद करते हैं और आप कभी अपने को गंभीरता से नहीं लेते हैं”।
”मेरे मामले में, मेरी मानसिक अवस्था तुलनात्मक रूप से ज्यादा शांतिपूर्ण है। कठिन परिस्थितियों या कभी काफी दु:खद समाचार मिलने के बावजूद, मेरा दिमाग चिंतित नहीं होता। कुछ क्षणों के लिए कुछ दु:खद अनुभूतियां होती हैं लेकिन लम्बे समय तक शेष नहीं रहतीं। कुछ मिनटों या कुछ घण्टों के भीतर ही वह चली जाती हैं। इसलिए मैं सामान्यतया समुद्र की तरह इसकी व्याख्या करता हूं। किनारे पर लहरें आती हैं और चली जातीं हैं, परन्तु तल सदैव शांत रहता है।”
मुझे तनिक भी संदेह नहीं कि दलाई लामा की सशक्त उपस्थिति का उनकी गहरी गंभीर आध्यात्मिकता से कुछ सम्बन्ध है। उनका विख्यात स्नेह उनकी आध्यात्मिक सिध्दि की सामान्य अभिव्यक्ति है।”
******
विक्टर चेन की पुस्तक के उपरोक्त पैराग्राफ से दलाई लामा द्वारा लेखक को दिए गए उत्तर से निष्कपटता से परिपूर्ण मानवता और गंभीर आत्मनिरीक्षण बहुत साफ-साफ उभर कर आता है।
लाल कृष्ण आडवाणी
नयी दिल्ली
१८ अप्रैल, २०१०
यह दलाई लामा से मेरी पहली मुलाकात नहीं थी। पहले भी अनेक बार हमारा मिलना हुआ है। जबसे उन्हें अपने हजारों अनुयायियों के साथ तिब्बत छोड़ने को बाध्य होना पड़ा और उन्होंने भारत को अपने देश के रूप में अपनाया तब से अनेक कार्यक्रमों में हम दोनों मिले हैं। हम दोनों के बीच सदैव स्नेह और परस्पर आदरभाव के तार जुड़े रहे हैं।
लेकिन कुंभ में दो दिनों तक उनके साथ जो निकटता हुई उससे मेरे मन में उनके प्रति सम्मान और बढ़ा है। उनकी विनम्रता, उनकी श्रेष्ठता, उनकी रचनात्मकता - यह सभी स्पष्ट विशेषताएं हैं।
एनसायक्लोपीडिया ऑफ हिन्दुइज्म के लोकार्पण कार्यक्रम में हम दोनों मंच पर बैठे थे कि अचानक श्रोताओं की व्यापक भीड़ में एक हलचल सी मची जिससे पता लगता था कि किसी विशेष अतिथि का आगमन हुआ है।
और दिखा कि स्वामी रामदेवजी वहां आए और मंच पर विराजे, श्रोताओं ने उत्साहपूर्वक उनका अभिनन्दन किया। परमार्थ निकेतन के स्वामी चिदानन्दजी ने जिन्होंने एनसायक्लोपीडिया को तैयार करने के महती कार्य की पहल की, स्वामी रामदेव को आदरपूर्वक मंच पर लाकर दलाई लामा के साथ बिठाया। और मैं यह देखकर हैरान हो गया कि दलाई लामा ने पहले तो उस तरह से अभिनन्दन किया जैसा सामान्य तौर पर किया जाता है और फिर बगैर किसी औपचारिकता के उन्होंने उनकी दाढ़ी खींचनी शुरू की।
स्वामी रामदेवजी जोर से हंसे और मुझे कहा: ”जब भी वह मुझसे मिलते हैं तो सदैव इसी तरह से अभिनन्दन करते हैं। वह बच्चे की भांति हैं। वस्तुत: दलाई लामा की यह बाल सुलभ सादगी ही उनको सबका प्रिय बनाती है।”
ऋषिकेश आश्रम में जहां मैं रूका था वहां तिब्बती धर्मगुरू के अनेक अनुयायी और प्रशंसक भी रूके थे। उनमें से एक चीनी सज्जन विक्टर चेन ने दलाई लामा पर उनके द्वारा लिखी गई एक उत्कृष्ट पुस्तक - ”द विस्डम ऑफ फॉरगिवनेस: इन्टिमेट कानवरशेसन्स एण्ड जर्नीस” (The Wisdom of Forgiveness : Intimate Conversations and Journeys) मुझे भेंट की।
दलाई लामा द्वारा रामदेवजी के इस तरह के अभिनन्दन ने मुझे इस पुस्तक के एक रोचक पैराग्राफ का स्मरण करा दिया। यह पैराग्राफ आयरलैण्ड के बेलफास्ट की उनकी यात्रा से सम्बन्धित अध्याय में से है। बेलफास्ट की सभा में प्रोटेस्टेंट और कैथोलिक दोनों मौजूद थे, दलाई लामा के एक ओर प्रोटेस्टेंट मिनिस्टर और दूसरी ओर कैथोलिक पादरी थे। जिस पैराग्राफ का मुझे स्मरण हुआ, वह इस प्रकार है:
”उन्होंने दोनों व्यक्तियों को अपने निकट खींचा और दोनों को गले लगाया। तभी उनकी आंखों में एक शरारती चमक झिलमिलाई, वह आगे बढ़े और उनकी दाढ़ियों को जोर से खींचने लगे। उपस्थित भीड़ आनन्दित हुई। दलाई लामा दाढ़ियों को देखते ही सदैव ऐसा ही करते हैं: वह उनके साथ खेलने से अपने को रोक नहीं पाते”।
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मूलत: हांगकांग के विक्टर चेन अब वैंकूवर में रहते हैं और ब्रिटिश कोलंबिया यूनिवर्सिटी के इंस्टीटयूट ऑफ एशियन रिसर्च में कार्यरत हैं। अपनी पुस्तक की प्रस्तावना में उन्होंने दलाई लामा की लोकप्रियता के मूल्यांकन को इन शब्दों में समाहित किया है:
मैं यह जानने को उत्सुक था कि क्या दलाई लामा को पता है कि वह लोगों के लिए इतने चुंबकीय क्यों है: उनके साथ एक साक्षात्कार में, मैंने उनसे कहा, ”मैं आपसे एक मूर्खतापूर्ण प्रश्न पूछना चाहूंगा।” तिब्बती नेता, भारत के धर्मशाला स्थित अपने आवासीय परिसर के मुलाकात कक्ष के कोने में रखी आरामकुर्सी पर सदैव की भांति पालती मारे बैठे हुए थे। ”आप इतने लोकप्रिय क्यों हैं? आपमें ऐसा क्या है कि अनेक लोग आपसे मिलने के लिए अपने आप को रोक नहीं पाते?”
दलाई लामा तब भी ऐसे ही बैठे थे, प्रश्न को विचारते हुए। उन्होंने मेरे प्रश्न को यूं ही नहीं टाल दिया जैसाकि मैं सोचता था कि वह ऐसा करेंगे।
वह विचारमग्न थे और उन्होंने उत्तर दिया ”मैं नहीं समझता कि मेरे अंदर विशेष रूप से अच्छी विशेषताएं हैं। हां, हो सकता है कुछ छोटी चीजें हों। मेरे पास सकारात्मक (पोजिटिव) दिमाग है। निश्चित ही कभी-कभी मुझे भी गुस्सा आता है। लेकिन मेरे दिल में, मैं कभी किसी को दोष नहीं देता, और न ही उनके बारे में बुरा सोचता हूं। मैं औरों के बारे में ज्यादा सोचने का प्रयास करता हूं। मैं मानता हूं कि मेरी तुलना में अन्य ज्यादा महत्वपूर्ण हैं। हो सकता है कि अनेक लोग मुझे मेरे अच्छे हृदय के लिए पसंद करते हों।
”अब मैं सोचता हूं कि शुरूआत में उनको उत्सुकता रहती होगी। तब शायद जब मैं किसी से पहली बार मिलता हूं तो वह मेरे लिए अपरिचित नहीं होता। मुझे सदैव ऐसा लगता है: वह अन्य मनुष्य ही है। कोई विशेष नहीं, मैं भी उनकी तरह।”
उन्होंने अपने गालों को अपनी अंगुलियों से दबाया और बोलते रहे, ”इस त्वचा के भीतर समान प्रकृति, समान तरह इच्छाएं और भावनाएं हैं। मैं सामान्यतया दूसरे व्यक्ति को खुशी की भावनाएं देने की कोशिस करता हूं। बदले में अनेक लोग मेरे बारे में कुछ पॉजिटिव बोलने लगते हैं। तब और लोग आते हैं, इसी का पालन करते हैं - यह भी सम्भव है।”
जीवन से बड़े उनके व्यक्तित्व की बनी छवि सम्बन्धी मेरे प्रश्न पर विचार करते हुए दलाई लामा ने जवाब देना जारी रखा ”अनेक लोग मेरी हँसी भी पसंद करते हैं। लेकिन किस तरह की हँसी, किस तरह की प्रसन्नता, मैं नहीं जानता।”
मैंने कहा ”जिस तरह की हँसी आप हंसते हैं, अनेक लोग आपकी हँसी पर टिप्पणी करते हैं। आप सत्तर के आस-पास हैं लेकिन अभी भी आप प्रसन्नचित्त शोरगुल को पसंद करते हैं और आप कभी अपने को गंभीरता से नहीं लेते हैं”।
”मेरे मामले में, मेरी मानसिक अवस्था तुलनात्मक रूप से ज्यादा शांतिपूर्ण है। कठिन परिस्थितियों या कभी काफी दु:खद समाचार मिलने के बावजूद, मेरा दिमाग चिंतित नहीं होता। कुछ क्षणों के लिए कुछ दु:खद अनुभूतियां होती हैं लेकिन लम्बे समय तक शेष नहीं रहतीं। कुछ मिनटों या कुछ घण्टों के भीतर ही वह चली जाती हैं। इसलिए मैं सामान्यतया समुद्र की तरह इसकी व्याख्या करता हूं। किनारे पर लहरें आती हैं और चली जातीं हैं, परन्तु तल सदैव शांत रहता है।”
मुझे तनिक भी संदेह नहीं कि दलाई लामा की सशक्त उपस्थिति का उनकी गहरी गंभीर आध्यात्मिकता से कुछ सम्बन्ध है। उनका विख्यात स्नेह उनकी आध्यात्मिक सिध्दि की सामान्य अभिव्यक्ति है।”
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विक्टर चेन की पुस्तक के उपरोक्त पैराग्राफ से दलाई लामा द्वारा लेखक को दिए गए उत्तर से निष्कपटता से परिपूर्ण मानवता और गंभीर आत्मनिरीक्षण बहुत साफ-साफ उभर कर आता है।
लाल कृष्ण आडवाणी
नयी दिल्ली
१८ अप्रैल, २०१०
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